Rukayya

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बेहिस लोग

आज की ढटरी हुई सर्दी की शाम, बाहर जाते हुवे लग रहा था शायद सरद हवाएं  चल रही है

हाथ पेरो ने काम करना बंद कर दिया था,मैंने एक शाल उठा कर कंधो पर डाली,और बाहर जाने लिए बेग उठाया,सीढ़ीओ से नीचे उतारते हुवे होंठ काँप रहे थे,गेट खोला  और बाहर निकली,

नुक्कड़ पर एक बाबा बैठे हुवे,आते जाते लोगो को लाचार निगाहो से  देख रहे थे,जैसे शायद किसी से कुछ कहना चाह रहे हो,आँखों में आंसू साफ़ दिखाई दे रहे थे,में दूर खड़ी  होकर उनके पास से  गुजरने वाले लोगो को देख रही थी,

किसी के पास इतना समय नहीं था की उनको देख पाता,लोग आते और चले जाते ,कुछ समय के बाद में उनके पास गई,और पुछा क्या हुआ ?


बेहिस लोग

उनको लगा शायद कोई उन की बात सुनने लिए आया है,

उन्होंने रोते हुवे बताया बेटी, दवाई लेने के लिए निकला था, किसी पैसे निकल लिए, बहुत समय से बैठा हूँ, शायद कोई मेंरे पास आकर परेशानी पूछ ले लकिन कोई नहीं आया,मुझे सिर्फ ५० रुपिय चाहिए जिससे में घर जा सकूँ ,मैंने पैसे दिय और वो दुआएं देते हुवे  रिक्शा में बैठ कर चले गए 

में खड़ी सोचती रही, शायद लोगो के पास इतना वक़त नहीं, किसी की परेशानी समझ सके,कभी कभी हमारे ही दिय हुवे दर्द से लोग रो रहे होते है और हम समझ ही नहीं पाते..

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10 Comments

Babita patel

04-Feb-2023 05:21 PM

nice

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Niraj Pandey

09-Oct-2021 07:56 PM

बहुत खूब

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Angela

01-Oct-2021 11:10 AM

Lovely😊

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